Sunday, December 14, 2014

हगने की समस्या

हमारे प्रधान मंत्री जी ने स्वच्छ भारत अभियान का प्रारम्भ किया है। इसके पहले हमारे पिछले प्रधानमंत्री जी ने निर्मल भारत अभियान चलाया था। दोनों अभियान के नाम सोच समझ कर रखे गए होंगे। इस बार वाले अभियान में पिछले वाले अभियान से ज़्यादा जोश दिखाई दे रहा है पर दोनों अभियानों का फोकस शौचालय बनाने पर ही टिका हुआ है। पश्चिमी देश अक्सर ये सोच कर कुटिल मुस्कान देते हैं कि जो देश अभी तक 'हगने' की समस्या से जूझ रहा है वो हमें क्या टक्कर देगा भला। और बड़े बड़े योजनाकार ये गुत्थी नहीं सुलझा पा रहे हैं कि आखिर हम हिन्दुस्तानी अब भी खुले में क्यों हगते हैं।

कुछ लोगों को मेरा ये 'हगने' शब्द का प्रयोग आपत्तिजनक लग सकता है। और यही मेरी इस अभियान से सबसे बड़ी शिकायत है। मध्यप्रदेश में स्वच्छ भारत अभियान के प्रारम्भ में माननीय मुख्यमंत्री ने सभी राज्य के अधिकारियों का आह्वाहन करते हुए कहा कि ' जहां स्वच्छता होती है वहीँ ईश्वर का वास होता है।' और तभी मेरे मन में ख्याल आया कि शायद इसीलिए हग्गे कभी साफ़ नहीं होंगे हमारे देश में। मैं जब भी विदेश गया तो देखा कि वहां के सारे शौचलय न सिर्फ साफ़ और खुशबूदार होते हैं बल्कि सूखे भी रहते हैं। मैं खुद बहुत सफाई पसन्द इंसान नहीं हूँ और इस बात के लिए अक्सर अपनी बीवी के कहर का शिकार होता हूँ। भले ही मेरा सफाई का स्तर किसी भी अन्य IIT के इंजीनियर जैसा ही है पर फिर भी मैं ये नही मानता कि सफाई का भगवान् से कोई भी लेना देना है।

समाजशास्त्र में हमने ऐसा पढ़ा था कि भारतीयों की मानसिकता सबसे ज़्यादा जातिवाद से प्रभावित होती है। और जातिवाद चलता है पवित्रता और अपवित्रता के आधार पर। हिन्दू नहा कर पूजा इसलिये करता है कि उसे पवित्र होना होता है, इसलिए नहीं कि वो बीमारी से बच सके। हिन्दुस्तानी हगने के बाद हाथ मिटटी से भी धोकर पवित्र हो जाता है। और इसलिए कोई शौचालय भारत में कभी साफ़ नहीं रह सकता। निर्मल भारत अभियान में हुए भ्रष्टाचार और ख़राब बने शौचालयों को एक बार के लिए अगर नज़रअंदाज़ भी कर दें तो भी हम देखते हैं कि गाँव का आदमी घर में बने आँगन में हगना गँवारा नहीं करता। मैंने अब तक जिस गाँव में भी निर्मल भारत के बने शौचालय देखे हैं वे या तो स्टोर की तरह प्रयोग किये जाते हैं या फिर जिन घरों में महिलाएं आवाज़ उठा पाती हैं वहां घर की महिलाएं शौचालय का प्रयोग करता है। वो भी तब जब शौचालय घर से थोड़ी दूरी पर हो ताकि उससे घर अपवित्र न हो। घर के मर्द अब भी खुले में ही मर्दानगी दिखाते हुए हगना पसंद करते हैं। लगभग सभी घरों में शौचलय घर के पिछवाड़े के आँगन में घर के मुख्य भवन से दूर बनते हैं। जब मैंने एक गाँव में एक से पूछा, "इ शौचालय घर का पिछवाड़ा में काहे बनवाए हो?" तो तपाक से जवाब आया, "कि पिछवाड़ा धोए खातिर पिछवाड़ा में ही न जाए का पड़बे।

स्वच्छ भारत अभियान के तहत बहुत सारे लोगों ने झाड़ू हाथ में लिया और कूड़ा करकट भी उठाया। ये भले ही सांकेतिक हो लेकिन इसने सफाई कर्मचारी, जो कि अमूमन एक ही जाति के होते हैं, चाहे मेहतर कहे जाते हों या वाल्मीकि, उनसे अछूत का दाग हटाने का एक प्रयास तो किया ही है। हमने भी अपने शहर में ये अभियान चलाया। सभी लोग जोश से सामने आये। उनमें से कुछ लोगों से मैंने कहा कि चलो सामूहिक शौचालय की भी सफाई करें। लोग उद्वेलित हो उठे। "अरे सर आप रहने दो, कोई स्वीपर कर देगा।" मुझे तब समझ आया कि स्वीपर एक कर्मचारी का पद नहीं बल्कि एक जाति है और मैं एक अफसर ही नहीं बल्कि एक तथाकथित ऊँची जाति का जातक हूँ। धन्यवाद है मेरे पापा को जो न सिर्फ खुद हारपिक और टॉयलेट ब्रश से हमारे घर का टॉयलेट साफ़ करते थे बल्कि हमें भी सिखाते थे और इसलिए मुझे विश्वास था कि मैं बहुत अच्छा टॉयलेट साफ़ कर सकता हूँ। हिंदुस्तान यूनिलीवर में काम करते हुए मैंने हार्पिक के कम्पटीशन डोमेक्स के लिए उपभोक्ता सर्वे करने में बहुत सारे घरों के शौचालय साफ़ किये और करवाये और इसलिए किसी और का टॉयलेट साफ़ करने कि हिचक भी मेरे अंदर से चली गयी। लेकिन सबसे बड़ा योगदान रहा मेरी बीवी का जिसने ताने कस के मुझसे अपने जर्मनी के घर का टॉयलेट खुद साफ़ करने को मजबूर किया। तब मेरी समझ में आया कि क्यों विदेश में पब्लिक टॉयलेट भी साफ़ रहते हैं। क्योंकि भले जैनिटर का काम तुच्छ माना जाता हो, उसे करके कोई अपवित्र नहीं होता।

यूरोप भी आज से 400 साल पहले वैसा ही गन्दा था जैसा आज भारत है। जब वैज्ञानिकों ने इस तथ्य की खोज की कि कॉलरा और हैज़ा जैसी बीमारी दैवी प्रकोप नहीं बल्कि कीटाणु से होते हैं तो उसने 100 साल में वहां के लोगों के रहन सहन पर बहुत असर डाला। इसलिए आज यूरोप और अमेरिका में गरीब घरों में भी एक छोटा पर साफ़ टॉयलेट ज़रूर होता है। हॉलीवुड की shrek फ़िल्म में एक ogre (राक्षस) के पास भी एक टॉयलेट था। 200 सालों के अंग्रेजों के राज ने कम से कम बीमारी को समझने का नजरिया तो ज़रूर बदला और उनकी देखा देखी भारत के रईसों ने टॉयलेट बनवाना शुरू कर दिया। भारतीयों के लिए घर में टॉयलेट होना तब भी अमीरी का द्योतक था और आज भी है। BPL की गरीबी रेखा से नीचे के सर्वे में घर में निजी शौचालय होना आज भी आपको गरीबी के रेखा के ऊपर धकेल सकता है।

बहरहाल मैंने सामूहिक शौचालय की सफाई की। कई बोतल एसिड और कड़ी घिसाई के बाद कहीं जाकर वे पैन सफ़ेद दिखने लगे। मुझे लगा अब लोग मेरी तारीफों के पुल बांधेंगे और मेरा साथ देने कूद पड़ेंगे। लेकिन लोग मुझे टॉयलेट साफ़ करते कौतूहल से देखते रहे और मेरे काम खत्म करने पर बड़े अधिकार से एक ने कहा कि सर वो बस स्टैंड वाला शौचालय भी साफ़ कर दो न। बहुत गन्दा है।  मैं गुस्से और खीज में हंस पड़ा। मैं समझ गया कि चाहे लोग झाड़ू कितनी भी लगा लें पर टॉयलेट में हाथ नहीं डालेंगे।

मैंने अपने गाँव के दौरों में ये गौर किया कि गरीब घरों के बीच टाइल्स और मार्बल से सजा कोई मंदिर या मज़ार ज़रूर दिख जाता है। ऐसे मंदिर मुझे मुह चिढ़ाते से लगते हैं जैसे कह रहे हों, "जहा स्वच्छता होती है वहीँ ईश्वर का वास होता है या फिर यूँ कह लो कि जब तक ईश्वर का वास नहीं होता तब तक स्वच्छता नहीं होती।" तभी दुर्गन्ध मारते सरकारी स्कूल और सरकारी दफ्तरों के शौचालय दांत निपोड़ के कहते हैं कि "हमारे यहाँ कभी ईश्वर का वास होना ही नहीं है तो स्वच्छता मुई की ज़रूरत ही क्या है"।

अभी 2 दिन बाद हमने अपने शहर के एक तालाब के सफाई के लिए श्रमदान का आयोजन किया है जिसकी तैयारी नगरपालिका कर रही है। आज की तारीख में  वह तालाब शहर के लोगों का सामूहिक शौचालय है और नगरपालिका वाले इस बात से बेहद परेशान हैं कि वहां टट्टी के बीच सफाई अभियान कैसे आयोजित होगा। मैंने कहा कि कुछ ऐसी व्यवस्था रखना कि लोगों की टट्टी अपने हाथ से न उठानी पड़े। ताकि कीटाणु न लगें। पर वे दांत निपोड़ने लगे कि "साहब आपका क्या भरोसा आप टट्टी भी उठाने लगो। हम तो आज से ही वहां की सफाई करवा देते हैं"।

लोगों को मेरी ज़ुबान से टट्टी और हग्गा सुनकर हंसी भी आती है और बुरा भी लगता है। भारत में हगना एक ऐसी चीज़ हैं जो करते सब हैं पर इस पर बात कोई नहीं करता। मेरा तो बहुत मन है कि मंदिरों के कुछ पंडितों से उस तालाब की टट्टी साफ़ करवाऊं ताकि उन्हें भी एहसास हो कि ईश्वर का वास सचमुच में कहाँ है। मुझें पता है कि ऐसे श्रमदान से देश साफ़ नहीं होगा और शायद हमारे प्रधानमंत्री जी को भी पता है। लेकिन हम फिर भी इस मुग़ालते में हग्गे साफ़ किये जाएंगे कि
ज़ालिम कभी तो तेरे दिल में मेरा जूनून-ए-इश्क़ उठेगा
तू जब भी खुले में हगेगा तो कसम है मुझे, बिना पिटे न उठेगा।।

9 comments:

manish said...

एकदम सटीक लेख है सर और हम सभी को यह जानने की जरूरत है कि स्वच्छता बहुत जरूरी है। लोग सोचते हैं कि या तो हमें फ्री में सार्वजनिक शौचालय में लेट्रिन करने दो वहाँ भी हम लेट्रिन के बाद भी पानी भी नहीं डालेंगे या फिर हम सडक के किनारे या तालाब के किनारे लेट्रिन करेंगे।उस पर भी यह कि आपने देखा तो थोड़ा सा घूम जायेंगे।हॉ ये और बात है कि छोटे –छोटे मिट्टी के मकानों की छत पर भी एक डिस्क जरूर नजर आयेगी कि शौचालय सरकार बना दे डिस्क और टी०वी० तो हम ही खरीद लेगें।

Unknown said...

remind me V. S. Naipaul's 'An area of darkness' where he scorned on the issue of 'Hagga'. Any way few years back it might have been termed as social problem but today its a governance issue. hope officers like you could bring about mindset change.

विष्णु राजगढ़िया said...

तथ्यपूर्ण आलेख, जिसे पढ़ना कोई कहानी पढ़ने जैसा आनंदकारी है

Shuchi said...

एक बड़ी समस्या को आपने अलग अंदाज़ में उल्लेखित किया है और आपकी विवेचना भी सटीक है.खुले में हगने का मुख्य कारन इसका बचपन से ही आदत हो जाना हैं और कुछ समय में ये सामाजिक मिलान का एक साधन हो जाता है. लोगो को समूह में हगने में आनंद आने लगता है और खुली हवा एक एडिक्शन हो जाती हैं. बीड़ी के साथ खुली हवा में शौच एक drug की तरह है.

Shuchi said...

एक प्रयोग कर के देखिये। गाँव में सामूहिक शौचालय ऐसे बनाये जाये जो खुले में शौच के अनुभूति कराये. निम्न विशेषतायें :
१. Our toilets have exhaust fan and air fresheners which keep them odorless. These are not available in village toilets or TSC toilets. So some innovative solution required for keeping them odorless. One is make roof sliding so that it could be opened if required. have holes in walls at multiple places. it will help in ventilation.
2. Make bidi shop available near group toilets. You can provide free bidi for each toilet use for promotion.
3. Water for sanitation must be provided by panchayat through common means.

arohan said...

mandir ke pujariyo is shit uthvane ka idead bada achha hai

Unknown said...

बडे अधभुत काम किये जब आप सिरोंज मै थे.

Unknown said...

बडे अधभुत काम किये जब आप सिरोंज मै थे.

Unknown said...

बडे अधभुत काम किये जब आप सिरोंज मै थे.